ये सहर भी तुझसे ज़िन्दगी की शब भी तुझसे हमनवा तुम मेरे हो क़ल्ब की धड़कन भी तुझसे खिजाँ के मौसम में ज़र्द पत्तों सा बिखरने का मुझे डर नहीं ख़िरमन है ग़र 'सफ़र' तो जमीं है उसकी सिर्फ़ तुझसे क़ल्ब- दिल खिजाँ- पतझड़ ख़िरमन- पत्तों का ढेर 🌝प्रतियोगिता-86 🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️