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ये रात,बिखरी हुई है,संभल जाए वक़्त बुरा है दरम्यान

ये रात,बिखरी हुई है,संभल जाए
वक़्त बुरा है दरम्यान निकल जाए
नसीब में नहीं कि सुकून मयस्सर हो
और ज़िन्दगी इस भीड़ में किधर जाए
जिस भीड़ में तन्हाई,मुक्कदर है
सफर तो है पर कदम ठहर जाए

ये रात बिखरी हुई है,संभल जाये

©paras Dlonelystar
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