राम चरित्र को बखानतें बहुत है मित्र. किंतु उनके भाव मन में नहीं धारते. हो रहे जुल्म रोज सड़कों पे कितने भी. देखते हैं किंतु कोई प्रश्न ना उभारते. करते है हनन रोज लाखों मर्यादाओं का. तब एक बार भी ना राम को निहारते. दशहरे में रावण शान से जलाये किंतु. खुद में समाए दशानन नहीं मारते. कवि~शिवेश राजा {शौर्य} ©Shivesh Raja #dashara