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पुनर्नवजागरण =========== मेरे द्वारा दिए गए पुनर

 पुनर्नवजागरण 
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मेरे द्वारा दिए गए पुनर्नवजागरण शीर्षक पर पाठकों को आपत्ति हो सकती है कि ये क्या नया शब्द गढ़ लिया, वो भी 21वीं सदी में, जबकि यह काल ज्ञान-विज्ञान के उत्कर्ष का काल है। मानव सभ्यता के उत्कर्ष का काल है। तो इसका कारण यह है कि जिस आस्था को तर्क से, ईश्वर केन्द्रित चिंतन को मानव केन्द्रित चिंतन से तथा भावुकता को बौद्धिकता से प्रतिसंतुलित करते हुए भारतीय नवजागरण आंदोलन की शुरुआत होती है तथा मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच एक लकीर खींची जाती है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह लकीर धीरे-धीरे गहराने की बजाय और भी मिटती जा रही है।हो सकता है कि आप मेरी बात से इत्तेफाक न रखें लेकिन यह सच है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि एक बार फिर हमलोग मध्यकाल की ओर जा रहे हैं। एक बार फिर हमलोग आस्था, भावुकता और ईश्वर केंद्रित चिंतन के मकड़जाल में उलझते जा रहे हैं। धर्म के नाम पर लोगों की हत्या, जातिवाद, मंदिर-मस्जिद को लेकर झगड़ा, भगवान् की जाति व धर्म को लेकर लोगों के बीच झगड़ा,गाय को लेकर लोगों की हत्या, माॅब लिंचिग, पुष्पक विमान की बातें करना या फिर यह कहना कि भगवान् शंकर ने विश्व में सर्वप्रथम मानव अंग का ट्रांसप्लांट किया था आदि बातें हमारे समाज को आगे ले जाने की बजाय उसे और पीछे धकेल रहा है। इससे भी बड़ी बात यह है कि प्रिंट मीडिया, टीवी मीडिया और सोशल साइट्स पर उपरोक्त मुद्दों पर डिबेट करवाएं जाते हैं, तो हमें सोचने के लिए मजबूर कर देता है कि हम कहां पर खड़े हैं? इस प्रकार की दकियानूसी बातें अगर समाज में पैठ कर गया हो तो जरूरत है कि एक बार फिर से नवजागरण आंदोलन की दीपक को जलाया जाए ताकि चेतना से शून्य पड़े समाज को चेतना से लैस किया जा सके। धर्म की मूल संवेदना से उसका साक्षात्कार करवाया जाए। जिससे सर्वधर्म सम्भाव वाले समाज का निर्माण संभव हो सकेगा। 
प्रियदर्शन कुमार
 पुनर्नवजागरण 
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मेरे द्वारा दिए गए पुनर्नवजागरण शीर्षक पर पाठकों को आपत्ति हो सकती है कि ये क्या नया शब्द गढ़ लिया, वो भी 21वीं सदी में, जबकि यह काल ज्ञान-विज्ञान के उत्कर्ष का काल है। मानव सभ्यता के उत्कर्ष का काल है। तो इसका कारण यह है कि जिस आस्था को तर्क से, ईश्वर केन्द्रित चिंतन को मानव केन्द्रित चिंतन से तथा भावुकता को बौद्धिकता से प्रतिसंतुलित करते हुए भारतीय नवजागरण आंदोलन की शुरुआत होती है तथा मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच एक लकीर खींची जाती है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह लकीर धीरे-धीरे गहराने की बजाय और भी मिटती जा रही है।हो सकता है कि आप मेरी बात से इत्तेफाक न रखें लेकिन यह सच है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि एक बार फिर हमलोग मध्यकाल की ओर जा रहे हैं। एक बार फिर हमलोग आस्था, भावुकता और ईश्वर केंद्रित चिंतन के मकड़जाल में उलझते जा रहे हैं। धर्म के नाम पर लोगों की हत्या, जातिवाद, मंदिर-मस्जिद को लेकर झगड़ा, भगवान् की जाति व धर्म को लेकर लोगों के बीच झगड़ा,गाय को लेकर लोगों की हत्या, माॅब लिंचिग, पुष्पक विमान की बातें करना या फिर यह कहना कि भगवान् शंकर ने विश्व में सर्वप्रथम मानव अंग का ट्रांसप्लांट किया था आदि बातें हमारे समाज को आगे ले जाने की बजाय उसे और पीछे धकेल रहा है। इससे भी बड़ी बात यह है कि प्रिंट मीडिया, टीवी मीडिया और सोशल साइट्स पर उपरोक्त मुद्दों पर डिबेट करवाएं जाते हैं, तो हमें सोचने के लिए मजबूर कर देता है कि हम कहां पर खड़े हैं? इस प्रकार की दकियानूसी बातें अगर समाज में पैठ कर गया हो तो जरूरत है कि एक बार फिर से नवजागरण आंदोलन की दीपक को जलाया जाए ताकि चेतना से शून्य पड़े समाज को चेतना से लैस किया जा सके। धर्म की मूल संवेदना से उसका साक्षात्कार करवाया जाए। जिससे सर्वधर्म सम्भाव वाले समाज का निर्माण संभव हो सकेगा। 
प्रियदर्शन कुमार