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क्या लिखूं दोस्त शब्द नही मिलतें जुबान के पन्नों प

क्या लिखूं दोस्त शब्द नही मिलतें
जुबान के पन्नों पर लफ्ज नही खिलते।
जितना लिखूं तुम्हारे लिये कम ही पड़ता है।
तुम्हारी कमी से दिल बड़ा खलता है।
चलो मिलकर पुराने दिन बिताते है।
साथ मिलकर बेफिक्री से जीते हैं।
कैंटीन के चाय समोसा और बात - बात पर शर्त लगाते हैं।
अपने अपने कृश की बातें एक दूसरे को बताते हैं।
चलो वो मस्ती भरे दिन फिर से बिताते हैं। - "नेहा शर्मा" दोस्ती पर मेरी भी कविता
क्या लिखूं दोस्त शब्द नही मिलतें
जुबान के पन्नों पर लफ्ज नही खिलते।
जितना लिखूं तुम्हारे लिये कम ही पड़ता है।
तुम्हारी कमी से दिल बड़ा खलता है।
चलो मिलकर पुराने दिन बिताते है।
साथ मिलकर बेफिक्री से जीते हैं।
कैंटीन के चाय समोसा और बात - बात पर शर्त लगाते हैं।
अपने अपने कृश की बातें एक दूसरे को बताते हैं।
चलो वो मस्ती भरे दिन फिर से बिताते हैं। - "नेहा शर्मा" दोस्ती पर मेरी भी कविता