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मन हो व्याकुल बहे निर्झर नेत्र तृष्णा तोहे निहारूँ

मन हो व्याकुल बहे निर्झर नेत्र तृष्णा तोहे निहारूँ एक बार,
व्यग्रता से मन हो निश्चिंत तहुँ दर्शन दो मेरे मनु पालनहार,

तुम संग प्रीत की व भक्ति की डोरी हृदय संग मोहे बांध ली,
कृष्ण कृष्ण कहते कहते ये वाणी मेरी हे! कृष्ण थकती नही,

हृदय क्रिन्दन पीड़ सताये मन मनुहारी कानाहरी मन माला जपे,
धरा-अम्बर,क्षितिज-अंतराल जो भी हो जुबाँ मेरी तेरा नाम रटे,

बारम्बार अनेकों बार शत स शत बार वाणी बस तेरा सुमिरन करे,
समस्त जग त्याग परित्याग किया मोह तो बस शरण तेरी आन पड़े,

चहुँओर तेरी ही माया तुझ बिन न कोई काम बने,तू ही उद्धार करे,
ज्ञानदाता तुम्ही हो सरथी संगी तुम्ही हो तुम ही गीता का सार रचे,

छीन लो चाहे सब कुछ ये वाणी का न मर्म तुम कभी न मोह से लेना,
समस्त भुजाओं पर तेरा अधिकार है, तुम से बारम्बार यह है कहना।

 मन हो व्याकुल बहे निर्झर नेत्र तृष्णा तोहे निहारूँ एक बार,
व्यग्रता से मन हो निश्चिंत तहुँ दर्शन दो मेरे मनु पालनहार,

तुम संग प्रीत की व भक्ति की डोरी हृदय संग मोहे बांध ली,
कृष्ण कृष्ण कहते कहते ये वाणी मेरी हे! कृष्ण थकती नही,

हृदय क्रिन्दन पीड़ सताये मन मनुहारी कानाहरी मन माला जपे,
धरा-अम्बर,क्षितिज-अंतराल जो भी हो जुबाँ मेरी तेरा नाम रटे,
मन हो व्याकुल बहे निर्झर नेत्र तृष्णा तोहे निहारूँ एक बार,
व्यग्रता से मन हो निश्चिंत तहुँ दर्शन दो मेरे मनु पालनहार,

तुम संग प्रीत की व भक्ति की डोरी हृदय संग मोहे बांध ली,
कृष्ण कृष्ण कहते कहते ये वाणी मेरी हे! कृष्ण थकती नही,

हृदय क्रिन्दन पीड़ सताये मन मनुहारी कानाहरी मन माला जपे,
धरा-अम्बर,क्षितिज-अंतराल जो भी हो जुबाँ मेरी तेरा नाम रटे,

बारम्बार अनेकों बार शत स शत बार वाणी बस तेरा सुमिरन करे,
समस्त जग त्याग परित्याग किया मोह तो बस शरण तेरी आन पड़े,

चहुँओर तेरी ही माया तुझ बिन न कोई काम बने,तू ही उद्धार करे,
ज्ञानदाता तुम्ही हो सरथी संगी तुम्ही हो तुम ही गीता का सार रचे,

छीन लो चाहे सब कुछ ये वाणी का न मर्म तुम कभी न मोह से लेना,
समस्त भुजाओं पर तेरा अधिकार है, तुम से बारम्बार यह है कहना।

 मन हो व्याकुल बहे निर्झर नेत्र तृष्णा तोहे निहारूँ एक बार,
व्यग्रता से मन हो निश्चिंत तहुँ दर्शन दो मेरे मनु पालनहार,

तुम संग प्रीत की व भक्ति की डोरी हृदय संग मोहे बांध ली,
कृष्ण कृष्ण कहते कहते ये वाणी मेरी हे! कृष्ण थकती नही,

हृदय क्रिन्दन पीड़ सताये मन मनुहारी कानाहरी मन माला जपे,
धरा-अम्बर,क्षितिज-अंतराल जो भी हो जुबाँ मेरी तेरा नाम रटे,

मन हो व्याकुल बहे निर्झर नेत्र तृष्णा तोहे निहारूँ एक बार, व्यग्रता से मन हो निश्चिंत तहुँ दर्शन दो मेरे मनु पालनहार, तुम संग प्रीत की व भक्ति की डोरी हृदय संग मोहे बांध ली, कृष्ण कृष्ण कहते कहते ये वाणी मेरी हे! कृष्ण थकती नही, हृदय क्रिन्दन पीड़ सताये मन मनुहारी कानाहरी मन माला जपे, धरा-अम्बर,क्षितिज-अंतराल जो भी हो जुबाँ मेरी तेरा नाम रटे, #Krishna #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #yqquotes #Krishnalove #vaaninhi