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गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ पर कहते है

गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ 
पर कहते है लोग, की मैं "अनोखा" हूँ

गहराइयों में डुबू और भीतर घसता चलु 
खुद को बनाने-बिगाड़ने का एक "मौका" हूँ 

तरने की चाह में गहरा सा एक छोर देखूं 
कहीं पसंदीदा, कहीं ओझल होती "नौका" हूँ

यहाँ पिंजरे में बंद पक्षी सा आँगन रहा
परे सबसे मैं खुद एक काल्पनिक "धोखा" हूँ 

अब मिलने से खुद को मैं खुद कैसे रोकूं 
बनते हुए सपनों का एक अलग "खोखा" हूँ

गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ
जिसे कहते है लोग की मैं भी "अनोखा" हूँ

©WRITERAKSHITAJANGID #boat
गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ 
पर कहते है लोग, की मैं "अनोखा" हूँ

गहराइयों में डुबू और भीतर घसता चलु 
खुद को बनाने-बिगाड़ने का एक "मौका" हूँ 

तरने की चाह में गहरा सा एक छोर देखूं 
कहीं पसंदीदा, कहीं ओझल होती "नौका" हूँ

यहाँ पिंजरे में बंद पक्षी सा आँगन रहा
परे सबसे मैं खुद एक काल्पनिक "धोखा" हूँ 

अब मिलने से खुद को मैं खुद कैसे रोकूं 
बनते हुए सपनों का एक अलग "खोखा" हूँ

गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ
जिसे कहते है लोग की मैं भी "अनोखा" हूँ

©WRITERAKSHITAJANGID #boat