काव्य मन के भाव से उपजता है, जैसे जबरन भाव नही उपजते वैसे ही काव्य स्वंय ओस की सर्द बूंदों सा स्वतः झरता रहता है। कविता स्वंयभू होती है, निर्विकार और निराकार! प्रकृति की अनवरत चलने वाली निर्माण क्रिया का शाश्वत संगीत और आदिपुरुष के मौन का चिरंतन राग, काव्य दोनो की सहकारिता का प्रमाण है। ©Neha singh #leaf #aslineha #nehasingh #neha #yqdidi #yq #thought_of_the_day #thought #kavita #hindi_quotes