ए बरखा बस तू यूंही बरसते रहना सौन्दर्य धरा का बसा है तुझ में तेरे आने से मन हो जाता है प्रफुल्लित खिल जातें हैं मन ओर वन के सुमन लताएं तेरे आने की खुशी में फैला लेती अपनी बाहें मेंढ़क राजा मर्दगं बजाए तितली स्वरों को छेड़े चीड़ीया आए आँगन मेरे ओर सावन के गीत गाए बंदर मामा ड़ाली झुले ओर मयुरा झुम , झुम नाचे काली बदली घुम, घुम बरसे ओर गगन से बीजली फोटू खिचें चांदनी देखे मेघों के चिलमन से सरिता अपनी मस्ति में बहती जाए मानो जैसे पर्वत अपनी जल धारा शिवलिंग पर चड़ाए घटा अपनी छटा बीखरे तन , मन मेरा भीगा जाए ताल तलया इसे देख फुली न समाए लगता है जैसे धरती बनी हो दुल्हन बरात चड़ा हो सावन मेघ करे गर्जना आज स्वयंवर में इन्द्र धनुष तोड़ा जाए बरखा बस तू योंहीं बरसते रहना ( बरखा तेरे गीत मिलन के ) ©Indra jeet # ए बरखा बस तू यूंही बरसते रहना सौन्दर्य धरा का बसा है तुझ में तेरे आने से मन हो जाता है प्रफुल्लित खिल जातें हैं मन ओर वन के सुमन लताएं तेरे आने की खुशी में फैला लेती अपनी बाहें मेंढ़क राजा मर्दगं बजाए तितली स्वरों को छेड़े चीड़ीया आए आँगन मेरे ओर सावन के गीत गाए बंदर मामा ड़ाली झुले ओर मयुरा झुम , झुम नाचे