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हर्ज क्या है? निष्पक्ष सच बताने में, हर्ज क्या ह

हर्ज क्या है? 

निष्पक्ष सच बताने में, हर्ज क्या है..
कुछ राज छुपाने में,फिर हर्ज क्या है.. 

ज़हर नफ़रतों का घुलने लगे जब रिश्तों में, 
ऐसे रिश्तों से दूर हो जाने में फिर हर्ज क्या है..

काले धन खपते अब तो मंदिर- मस्जिदों में, 
 नास्तिक बन के ही रहने में फ़िर हर्ज क्या है..

अंतिम स्वास् तक बढ़ती रहे पुण्य की गिनती, 
मोह को त्याग सत्संग करने में फिर हर्ज क्या है..

मासूम चेहरों की दुश्मन है ये फरेबी दुनिया, 
मुखौटे रंगीन रख लेने से फिर हर्ज क्या है..

बोलते संवाद जब  मायने खोने लगे,
ख़ामोशी से बात कहने में फिर हर्ज क्या है... 

घुटन भरा लगने लगे जब दिलों का बंधन, 
आजाद हो के जीने में फिर हर्ज क्या है..

दिल लुभाना तो तासीर धोखे की, 
यकीं से पहले दिल आजमाने में फिर हर्ज क्या है..

 आडंबर भरे पड़े हैं 'सपना' ,इस कलयुगी भक्ति पर,
 सेवा भाव से ही प्रभु को पाने में फिर हर्ज क्या है..

©Chanchal's poetry
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