मेरी स्याही लड़ती है मेरे आँसुओ से जो गोल गोल बूँदों सदृश उभर आते हैं पलकों की सीपी में उनका स्वाति आने से पूर्व मैं उन्हें भीतर धकेल देती हूँ मैं नहीं बल्कि मेरी कविताएँ जो उस स्याही से लिखी है जो खुशियों के वक्त मैंने समेट कर रखी थी मुझे समझ नहीं आता कि लोग मुझे क्यों पूछते हैं कि तुम क्यों लिखा करती हो मैं तो अत्यंत लोलुप हूँ किसी के लिए कैसे लिख सकती हूँ मैं स्वयं के लिए लिखती हूँ अपने आँसुओं के लिए और अनकही बातों के लिए जो अपनी कविताओं के सिवाय किसी और से नहीं कह पाई। #अनाम_ख़्याल #अनाम_कविताएँ