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मन और मंज़िल कुछ सपने संजोए थे कुछ ख्वाब फिरोए थे ब

मन और मंज़िल कुछ सपने संजोए थे
कुछ ख्वाब फिरोए थे
बंद आँखो से न जाने ,खुद से ही कितने वादें किये थे।
बस वक्त बितता चला गया और मेरे सपने धुमिल होती चली गयी ।
मेहनत तो की थी सपनों को पाने की उसे हासिल करने की पर कमब्कत सपने भी बेवफा निकली ।
पर बात भी तो सच थी ,मंजिल पाना इतना आसान कहाँ
बेवजह वक्त जाया करता ,मन ही मन खुद को कोसता
सहसा मन के कोने से आवाज आयी 
यूँ हार ना मान,उठ और एक कोशिश तो कर।
उस दिन उठा ,फिर से क्योकि
कुछ सपने संजोए थे
कुछ ख्वाब फिरोए थे ।।

@lonely_soul कर हर मैदान फतह
मन और मंज़िल कुछ सपने संजोए थे
कुछ ख्वाब फिरोए थे
बंद आँखो से न जाने ,खुद से ही कितने वादें किये थे।
बस वक्त बितता चला गया और मेरे सपने धुमिल होती चली गयी ।
मेहनत तो की थी सपनों को पाने की उसे हासिल करने की पर कमब्कत सपने भी बेवफा निकली ।
पर बात भी तो सच थी ,मंजिल पाना इतना आसान कहाँ
बेवजह वक्त जाया करता ,मन ही मन खुद को कोसता
सहसा मन के कोने से आवाज आयी 
यूँ हार ना मान,उठ और एक कोशिश तो कर।
उस दिन उठा ,फिर से क्योकि
कुछ सपने संजोए थे
कुछ ख्वाब फिरोए थे ।।

@lonely_soul कर हर मैदान फतह