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आज फिर एक बार... जीवन अंधकारमय सा प्रतीत हो रहा ह

आज फिर एक बार... 
जीवन अंधकारमय सा प्रतीत हो रहा है
आज फिर एक बार... 
आशा का दिया निराशा में तब्दील हो उठा है
आज फिर एक बार..... 
उम्मीद की किरण बुझी हुई सी प्रतीत हो उठी है
आज फिर एक बार... 
इस बदलते साल में मेरा बहुत अपना सा इंसान
मुझसे दूर जाता हुआ प्रतीत हो रहा है
आज फिर एक बार.... 
सूना आँगन सूना घर और ये तन्हाई मानो मुझे खाने को आ रहे हैं
आज फिर एक बार.... 
जिजीविषा की इच्छा मुमुर्षा में तब्दील हो उठी है
आज फिर एक बार.....

©भारती वर्मा
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