मोम को पिघलना पडा़ रोशनी के वास्ते, बडी़ जिद्दी हैं न जाने कब-तक लेकर जायेंगी मंजिल पे रास्ते, खुद को संजोऊँ तो संजोऊँ कैसे पागलो की बस्ती में, खुद को भी पागल बनाना पडा़ पागलो के वस्ते। हाँ थोडा़ झुम लेता हूँ गम भुलाने के वास्ते, जैसे कस्ती भटक जाती हैं मंजिल से रास्ते, बडी़ नदान हैं मेरी जान खाने के समय पुछती हैं 'वों पागल' कर लिये नास्ते, यार खुद को भी पागल बनाना पड़ता हैं उस पगली के वास्ते। ©Ajit Bhai Yadav 'वों पागल' #पागल #वोंपागल #पागलपन #नोजोटो #फनीशायरी