हद से आगे बात बढ़ने को चली जनवरी सूनी गुज़रने को चली वस्ल अब ही तो हुआ था ऐ फ़लक और अब ही रुत बिछड़ने को चली ये पहल क्या ख़ूब लाई रंग है ज़िन्दगी थोड़ी सवरने को चली ज़ख़्म फ़िरसे हो रहे हैं क्यों हरे क्यों दुबारा इश्क़ करने को चली 2122 2122 212