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ऐसा नही है कि अब मेरी आंखे बंद होती हैं तो तुम्हार

ऐसा नही है कि अब मेरी आंखे बंद होती हैं तो तुम्हारी  आंखे मेरे पलकों और नींद के दरम्यान नही आती। ऐसा भी नही है कि मासूमियत से लबरेज तुम्हारा चेहरा, अब तन्हाइयों में मेरे ख्यालों को नही कचोटता।  मैं अब भी गुनगुनाता हूँ तो तुम्हारें सांसों का धुन, मेरे सीने में गूंजता है। अक्सर नज्में पढ़ता हूँ तो तुम्हारें ख्याल दिसंबर की सर्द सी सरसराहट बन मेरु में दस्तक देते हैं। मैं ठिठक जाता हूँ , पर वक्त बढ़ता चला जाता है। पिछली बार मेहंदी से भरी तुम्हारी कलाइयों का गेरुआपन जब नजरों ने छुआ था तो कल्पनाओं का व्योम इस सृष्टि को लांघ बहुत दूर चला गया था। वहां से जहां से बस जी करता था कि किसी रोज मोतीझील के सामने बैठे ,अपने हाथों को तुम्हारें हाथों में थमा , ये सारी बातें तुम्हें सुना डालूँ और प्रेम का भार बांट लूं। पर मैं कह नहीं पाता। शायद इसलिए की इतना खुलूस भरा अहसास लफ्जों की बानगी से ऊपर होता है। अब मैं न तुमसे मुहब्बत कहना चाहता हूँ , न तुमसे मुहब्बत सुनना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम जब भी, आईने में खुद को देखो तो मेरे मुहब्बत को समझ सको । 

खैर छोड़ो ऐसे सीरियस बकवास तो मैं करता ही रहता हूँ। वैसे मोतीझील हम दोनों के शहर में कभी मन करें तो हमें बुलाओ या खुद आओ, पता तो मालूम ही होगा तुम्हारें बाएं हाथ की तीसरी उंगली :)

ऐसा नही है कि अब मेरी आंखे बंद होती हैं तो तुम्हारी आंखे मेरे पलकों और नींद के दरम्यान नही आती। ऐसा भी नही है कि मासूमियत से लबरेज तुम्हारा चेहरा, अब तन्हाइयों में मेरे ख्यालों को नही कचोटता। मैं अब भी गुनगुनाता हूँ तो तुम्हारें सांसों का धुन, मेरे सीने में गूंजता है। अक्सर नज्में पढ़ता हूँ तो तुम्हारें ख्याल दिसंबर की सर्द सी सरसराहट बन मेरु में दस्तक देते हैं। मैं ठिठक जाता हूँ , पर वक्त बढ़ता चला जाता है। पिछली बार मेहंदी से भरी तुम्हारी कलाइयों का गेरुआपन जब नजरों ने छुआ था तो कल्पनाओं का व्योम इस सृष्टि को लांघ बहुत दूर चला गया था। वहां से जहां से बस जी करता था कि किसी रोज मोतीझील के सामने बैठे ,अपने हाथों को तुम्हारें हाथों में थमा , ये सारी बातें तुम्हें सुना डालूँ और प्रेम का भार बांट लूं। पर मैं कह नहीं पाता। शायद इसलिए की इतना खुलूस भरा अहसास लफ्जों की बानगी से ऊपर होता है। अब मैं न तुमसे मुहब्बत कहना चाहता हूँ , न तुमसे मुहब्बत सुनना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम जब भी, आईने में खुद को देखो तो मेरे मुहब्बत को समझ सको । खैर छोड़ो ऐसे सीरियस बकवास तो मैं करता ही रहता हूँ। वैसे मोतीझील हम दोनों के शहर में कभी मन करें तो हमें बुलाओ या खुद आओ, पता तो मालूम ही होगा तुम्हारें बाएं हाथ की तीसरी उंगली :)

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