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हाँ बहका बहका सा रहता हूं मैं फिक्रमंद अपने संसार

हाँ बहका बहका सा  रहता हूं मैं फिक्रमंद अपने संसार घर बार के लिए! हाँ मां की दवा हाँ ,वह बाबूजी का चश्मा, खरीदना है ये सभी घरबार के लिए! रात को सोते वक्त फिक्र सताती है मुझको परिवार चलाने की, हर एक रोज करता हूं तैयारी में स्वयं को जलाने की! लोग पीते हैं और बहक  जाते हैं हम तो बिना पिए अपने काम में रहते हैं मसरूफ इस तरह से हम अपने ही काम में मेहक जाते हैं! आहिस्ता आहिस्ता उम्र बीत रही है परिवार की जरूरतों को सुलझाने में !कितना आता है मुझको मजा अपने आप को उलझाने में! हां बहका बहका सा रहता हूं मैं फिक्रमंद अपने संसार घरबार के लिए!

©Dinesh Kashyap # बहका बहका सा
हाँ बहका बहका सा  रहता हूं मैं फिक्रमंद अपने संसार घर बार के लिए! हाँ मां की दवा हाँ ,वह बाबूजी का चश्मा, खरीदना है ये सभी घरबार के लिए! रात को सोते वक्त फिक्र सताती है मुझको परिवार चलाने की, हर एक रोज करता हूं तैयारी में स्वयं को जलाने की! लोग पीते हैं और बहक  जाते हैं हम तो बिना पिए अपने काम में रहते हैं मसरूफ इस तरह से हम अपने ही काम में मेहक जाते हैं! आहिस्ता आहिस्ता उम्र बीत रही है परिवार की जरूरतों को सुलझाने में !कितना आता है मुझको मजा अपने आप को उलझाने में! हां बहका बहका सा रहता हूं मैं फिक्रमंद अपने संसार घरबार के लिए!

©Dinesh Kashyap # बहका बहका सा

# बहका बहका सा #Thoughts