White पुरानी किताबों मे ना मालूम कैसे सिमट ज़ाती हैं अनगिनित यादें; यूँ ही जैसे छत के जीने और अंधेरे कोने में कुछ अधूरी बातें अब तक मुँह फुलाये पड़ी हैं; सूखे गुलाबों के रंग उतरने के बावजूद यादों की ख़ुशबू अब भी साँसों को महकाती है.. अजीब होती हैं यादें , कल की होती हैं फिर भी उँगली थामे आज में आ जाती हैं, यूँ जैसे आज की रूह- अकेला कैसे छोड़ दे अपने तन को.. ©Rishi Ranjan hindi poetry poetry in hindi Extraterrestrial life Hinduism