क़र्ज़ का आसियाना बना बैठा, सपनों का घरोंदा मिटा बैठा। हर ख़्वाब जो आंखों में पाला था, वो ब्याज की लहरों में बहा बैठा। रातों को जागा उम्मीद लिए, सुबह को फिर दर्द चखा बैठा। महफ़िल में हंसी बांटी सबसे, अंदर ही अंदर रोना छुपा बैठा। चाहत थी उड़ानों की फिज़ा में, पर क़र्ज़ की ज़ंजीरें कसा बैठा। पंखों को अपने न थकने दिया, फिर भी हालात से हार जा बैठा। पर सफर अभी ख़त्म नहीं होगा, हर मुश्किल से रास्ता बनेगा। आसियाना नहीं रहेगा क़र्ज़ का, कभी तो नसीब का सूरज खिलेगा। ©usFAUJI क़र्ज़ का आसियाना #जीवन #कर्ज़ #ख्बाब #सपने #dreams #usfauji