इक मोह सा खींचता मुझको अपनी ओर खुद को दिखाकर मन को लुभाकर अपनी ओर बुलाता नये नये ढंग से सजता सँवरता जाने क्यों मुझे ये लगता वहम सा दर दर भटकता ये मुझको खींचता खुद को संग ले चलने के लिए कहता सा बिन सोचे मैं इसकी ओर बढ़ता फिर कुछ सोचकर रुक जाता मुझे तो ये माया जाल लगता नये नये रंग संवारे बाजार सा इक मोह सा Inspired by "Bajar darshan" है कोई यहाँ... इक मोह सा खींचता मुझको अपनी ओर खुद को दिखाकर मन को लुभाकर अपनी ओर बुलाता नये नये ढंग से सजता सँवरता जाने क्यों मुझे ये लगता वहम सा