भरी सभा कायरों की देखती रही मूक वधिर बनकर मरती रही एक अबला ध्युत की बलि चढ़कर वीर जो कहलाते थे, रक्त उनकी धमनियों का सो गया लज्जित हुई मानवता, अबला का सौदा जुए पर हो गया कैसे थे धर्मराज युधिष्ठिर और कैसी थी उनकी धर्म रक्षा हो जाती यदि निर्वस्त्र द्रौपदी तो फिर कौन सा धर्म माफ उनको करता कायरों की उस सभा में, सिर्फ एक ही थी सिंहनी अबला होते हुए भी जो सबला की भांति थी लड़ी पांच कायरों की, सशक्त भार्या द्रौपदी सिर झुका कर बैठे रहे कायर और अपमानित वो होती रही तीव्र इतनी पुकार थी उसकी कि बांसुरी वाले को आना पड़ा बच गई लाज मानवता की, कर्जदायी है इतिहास द्रौपदी का बड़ा ।। _____सुषमा नैय्यर भरी सभा कायरों की देखती रही मूक , वधिर बनकर मरती रही एक अबला ध्युत की बलि चढ़कर वीर जो कहलाते थे, रक्त उनकी धमनियों का सो गया लज्जित हुई मानवता, अबला का सौदा जुए पर हो गया कैसे थे धर्मराज युधिष्ठिर और कैसी थी उनकी धर्म रक्षा हो जाती यदि निर्वस्त्र द्रौपदी तो फिर कौन सा धर्म माफ उनको करता कायरों की उस सभा में, सिर्फ एक ही थी सिंहनी अबला होते हुए भी जो सबला की भांति थी लड़ी