कैसे तस्लीम करें रूहे मसरूर को! खुसतर अदाओं ने पूछा है नूर को! खुशामत अस्लाम इल्तजा एहतराम क्या क्या करें तेरी चाह में, सगुफ्ता दिली तुम्ही से मिली अजब कैफियत है निगाह में। खुद फुरस्तों ने मिलाया इतमिनान से! तो हम मनसकूँन खड़े देखे है हैरान से! हाँ करके दीरार बड़ा ऐतबार सगुफ्ता दिली तुम्ही से मिली अजब कैफियत है निगाह में। sagufta dili tumhi se mili......