शाहों के छीकने पर भी होती है शहर में हलचल.. फकीर मर जाते है आवाज़ नहीं होती.. दिखावे का ज़माना है,दिखाते जाइये साहब.. कितने भी सच्चे दिल हो परवाह नहीं होती.. मुखौटा पहनिए और पहरहन अच्छा रखिये.. अंदर की खूबी से अब पहचान नहीं होती.. बेटियां बुलंदी पर हैं पर,हैं कुछ आदम कमअक्ल.. कि घर मे बेटी जन्मे तो शान नहीं होती.. तिरंगे को लहरते न देखूँ जब तक सरहद पर.. सुबह भी नही होती शाम भी नहीं होती.. सरहदों पर भेजती है वो बेटे,शौहर और भाई को.. मुल्क पहले है शायद ..क्यों उसके सीने में जान नहीं होती..? -✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो' #prb #motivation #patiotism