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कभी-कभी मन में इतना कुछ कहने के लिए एकत्र हो जाता

कभी-कभी मन में इतना कुछ कहने के लिए एकत्र हो जाता है कि बस एक विकल मौन मन पर छा जाता है कुछ कहा नहीं जाता सुना है वाल्मीकि भी कभी मौन थे व्यथा के तीखे 
शरों से तिलमिला कर उनका कंठ फूटा...
 -रघुवीर सहाय

©VED PRAKASH 73
  #जीवन_धारा