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गीली लकड़ी सा सुलग रहा है ऐसा इश्क़ तुम्हारा है न

गीली लकड़ी सा सुलग रहा है
ऐसा इश्क़ तुम्हारा है
न तो जल कर हम ख़ाक हुए
न पूरा ही बुझ पाया है

ख़ुश्बू जैसे लोग मिले
ज़िंदगी के हर अफ़साने में
चाहूं पर कैसे छोड़ भी दूं
मज़ा जो है दर्द दोहराने में

दिल को फिर बहला दे जो
वो चांद कहां फिर आया है
कुछ दाग़ तेरे दामन पे लगे
मैनें भी बहुत गंवाया है

अब वक्त मिलता ही नहीं
अच्छा ये बहाना है
समझ रहा हूं मैं भी तुझे
तुझे मुझको यू हीं जलाना है... 
© trehan abhishek
 #गीलीलकड़ी #manawoawaratha
गीली लकड़ी सा सुलग रहा है
ऐसा इश्क़ तुम्हारा है
न तो जल कर हम ख़ाक हुए
न पूरा ही बुझ पाया है

ख़ुश्बू जैसे लोग मिले
ज़िंदगी के हर अफ़साने में
चाहूं पर कैसे छोड़ भी दूं
मज़ा जो है दर्द दोहराने में

दिल को फिर बहला दे जो
वो चांद कहां फिर आया है
कुछ दाग़ तेरे दामन पे लगे
मैनें भी बहुत गंवाया है

अब वक्त मिलता ही नहीं
अच्छा ये बहाना है
समझ रहा हूं मैं भी तुझे
तुझे मुझको यू हीं जलाना है... 
© trehan abhishek
 #गीलीलकड़ी #manawoawaratha