समय बीता, 1842 में, लिखी गई फिर एक नई कहानी| महाराजा गंगाधर राव से विवाह हुआ, लक्ष्मीबाई नाम से बनी झांसी की रानी|| आगे चल पुत्र रत्न पाया, झांसी में फिर खुशियां छाई थी| 4 माह बाद पुत्र खोया, क्या नियति को भी दया नहीं आई थी|| दामोदर राव गोद लिया, पति को फिर उसने खोया था| यह अन्याय देख, कुदरत भी खूब रोया था|| राज्य हड़प नीति डलहौज़ी लाया, ब्रिटिशर्स का वार यह तीखा था| पर गलत के सामने झुकना, भला लक्ष्मीबाई ने कब सीखा था|| गुस्से से धीरे-धीरे विद्रोह हुआ, 1857 की हिंसा भड़क उठी| दिल्ली, झांसी, लखनऊ, बनारस, की भी आत्मा तड़प उठी|| दामोदर को बांध पीठ पर, मैदान में खड़ी भवानी थी| लक्ष्मी रूप में शक्ति अवतार है वो, यह बात अंग्रेजों को बतानी थी|| भीषण युद्ध चला, अंग्रेजों को धूल चटाई थी| वह रानी लक्ष्मीबाई थी, या स्वयं काली नरसंहार करने आई थी|| महारानी फिर कालपी पहुंची, वहां तात्या तोपे संग योजना बनाई थी| चुप कैसे रहती भला वो, आखिर अंग्रेजों की क्रूर नीति उसे रास ना आई थी|| फिर घमासान युद्ध हुआ, रानी ने क्या खूब वीरता दिखाई थी| अंततः ह्यूरोज के वार से, रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति पाई थी|| रानी की कुशलता से स्तब्ध, अंग्रेजों ने भी उनकी वीरता गायी थी| एक अकेली मर्द थी वह क्रांतिकारियों में, ह्यूरोज ने यह बात बताई थी|| यह गौरवपूर्ण बलिदान, कभी ना भुला जाएगा| और नारी शक्ति का जब-जब विवरण होगा, तब रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले आएगा|| - ओजस्वनी शर्मा "मेरे अल्फ़ाज़" #solace #RaniLaxmiBai #nextpartuploadedsoon