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भूलकर आदमी... भूलकर आदमी, खुद को देखे कभी ,झांक

भूलकर आदमी...

भूलकर आदमी, खुद को देखे कभी ,झांक 
कर दिल में सारे, भरम दिल के मिट जाएंगे। 

क्यों समझता है, दुनिया को इतना ग़लत,
आईने की तरह ,ऐब ख़ुद के नज़र आएंगे।

क्यों  रंजो  ग़म सेक्ष परेशान है तू, सबको 
अपने से बेहतर समझने की ,कोशिश तो कर।

दिल में तेरे भी खुशियों के अंकुर खिलेंगे,
हरि नाम के तार ,तेरे मन से भी जुड़ जाएंगे।

©Anuj Ray #भूलकर आदमी ..
भूलकर आदमी...

भूलकर आदमी, खुद को देखे कभी ,झांक 
कर दिल में सारे, भरम दिल के मिट जाएंगे। 

क्यों समझता है, दुनिया को इतना ग़लत,
आईने की तरह ,ऐब ख़ुद के नज़र आएंगे।

क्यों  रंजो  ग़म सेक्ष परेशान है तू, सबको 
अपने से बेहतर समझने की ,कोशिश तो कर।

दिल में तेरे भी खुशियों के अंकुर खिलेंगे,
हरि नाम के तार ,तेरे मन से भी जुड़ जाएंगे।

©Anuj Ray #भूलकर आदमी ..