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वक़्त की स्याही और गहराई है, ज़िन्दगी मौत से टकराई

 वक़्त की स्याही और गहराई है,
ज़िन्दगी मौत से टकराई है..!

हर कदम पर बैठे हैं क़ातिल अपने ही,
क्या ख़ूब राजनीति गरमाई है..!

आरोप प्रत्यारोप चलता रहा,
दोषी न ख़ुद को ठहराई है..!

बदनाम है ज़िन्दगी यूँ ही,
मौत ये देख फिर से हर्षाई है..!

हुनर रखना था अच्छाई का,
बुराई की जीत कुछ यूँ दर्शायी है..!

कर्म का फल एक धोखा है,
बुद्धि सब की भरमाई(भ्रमित) है..!

©SHIVA KANT
  #waqtkisyahi