क्यों जिंदगी इम्तिहान लेती है शायद इसलिए कि इंसान मजबूत हो जाए निडर हो जाएं अपने आप काम के प्रति अपने सपनों के प्रति अपनी भावनाओं के प्रति इंसान की भावनाएं ही इंसान का सपना सच होगा या नहीं तय करती इंसान जितना चाहे अपनी भावनाओं से कभी ऊपर नहीं उठ पाता है भावनाएं जो इंसान को कमजोर बनाती है जो इंसान को दुखी करती है जो इंसान को हंसाती है जो इंसान को रुलाती है भावनाएं धारणाओं से बनती है जो भी धारणा इंसान किसी भी वस्तु किसी भी परिस्थिति किसी भी इंसान के प्रति बनाता है वही उसकी भावनाएं हो जाती है इंसान अपनी भावनाएं अपने हिसाब से नहीं बनाते हैं दूसरों को देखते हैं दूसरे क्या की क्या भावनाएं हैं इंसान अपने आप को कभी नहीं देखता इंसान अपने आपको दूसरों से कमजोर मानता है और महसूस भी करता है वह अपने आप को समझ ही नहीं पाता है कि वह वो सेर हैं जो जंगल का राजा है और वह हर मैं सपना सच कर सकता है जो उसने अपने लिए दिखा हे मन कभी घबराता है मन कभी इतराता है मन कभी कुछ लिख जाता है आशीष पवार