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जवानी,बुढ़ापा और बच्चो का स्कूल हूं मैं। मेले, फिज

जवानी,बुढ़ापा और बच्चो का स्कूल हूं मैं।
मेले, फिज़ा, खिज़ा,बहार,पतझड़ और सावन की झूल हूं मैं।
ये जीता,वो हारा,ये पाया, वो खोया,मगर आखिर में सिर्फ एक मुट्ठी धूल हूं मैं ।।

©Shahrukh shah
  #जींदगी #poeatry