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जीवन के एक मुकाम पर हरी संवेदनाये सूर्ख होकर धरती

जीवन के एक मुकाम पर
हरी संवेदनाये सूर्ख होकर
धरती में समाहित हुई
एक भी ऋतु न कारगर रही
प्राण प्रवाह में
अमृतके सिंचन का संकल्प किये 
रंगो की फुलवारी 
आहिस्ता श्वेत हो गई.
अपने चैतन्य से प्रगट हुई 
आध्यात्म अवस्था सह
आसमान में लीन हुई.

©Manisha Keshav
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