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वो दिन भी क्या दिन थे,!... जब सोच से बादशाह थे, बे

वो दिन भी क्या दिन थे,!... जब सोच से बादशाह थे,
बेजान गुड्डे गुड़ियों से खेल में भी भभूति का एहसास था।

कोई निजता न थी, अक्षुण्ता खुशदिली का ही माहौल था,
निहायत मुकद्दस थे रिश्ते, नाज़ुक सा एहसास था।

आत्मविस्मृति से कर लेते थे, कुछ बचपनें के वादे,
बस ज़ुनून-ए-दिल थे पूरे करने के इरादे।

बचपनें की याद-ए-माज़ी में गुमसुम हुए है आजकल,
इज़्तिराब-ए-गिरताब में डूबे, धीरे धीरे यादों में खोके हो रहे है गाफ़िल। 🌠💠𝐂𝐡𝐚𝐥𝐥𝐞𝐧𝐠𝐞 -𝟲💠🌠
#𝐜𝐨𝐥𝐥𝐚𝐛_𝐰𝐢𝐭𝐡_𝐚𝐚𝐩𝐤𝐢_𝐥𝐞𝐤𝐡𝐧𝐢

आज की रचना के लिए हमारा शब्द है 🎈📥
⬇🔻⬇🔻⬇🔻 ⬇ 🔻⬇ 🔻⬇
🎀वो दिन भी क्या दिन थे!🎀
🎗🎗🎗🎗🎗🎗🎗🎗
वो दिन भी क्या दिन थे,!... जब सोच से बादशाह थे,
बेजान गुड्डे गुड़ियों से खेल में भी भभूति का एहसास था।

कोई निजता न थी, अक्षुण्ता खुशदिली का ही माहौल था,
निहायत मुकद्दस थे रिश्ते, नाज़ुक सा एहसास था।

आत्मविस्मृति से कर लेते थे, कुछ बचपनें के वादे,
बस ज़ुनून-ए-दिल थे पूरे करने के इरादे।

बचपनें की याद-ए-माज़ी में गुमसुम हुए है आजकल,
इज़्तिराब-ए-गिरताब में डूबे, धीरे धीरे यादों में खोके हो रहे है गाफ़िल। 🌠💠𝐂𝐡𝐚𝐥𝐥𝐞𝐧𝐠𝐞 -𝟲💠🌠
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