"बुरा दौर" जो सोच रहे है,वो हो नही रहा है जो चाह रहे है,वो हो नही रहा है यही तेरे बुरे वक्त का दौर है,साखी खुद का साया ही शत्रु हो रहा है जब दोस्तों यह बुरे समय आता है बहुत कुछ हमको सीखा जाता है बुरा वक्त इतना भयानक होता है हमारा तन वस्त्र शत्रु हो जाता है जब तलक पैसा मेरे पास रहा है मुर्दे भी जीवित बन पास रहा है जैसे आया मेरी मुफलिसी का दौर बस अकेलापन मेरे पास रहा है यही है,दुनियादारी की किताब जब होता है,हमारा वक्त खराब आईने भी हमें घूरने लगते,जनाब जैसे हम हो कोई बदसूरत ख्वाब बुरे दौर में ईश्वर बहुत याद आता है रब के नाम से आदमी सुकूँ पाता है बुरे दौर मे जो रब से रिश्ता जोड़ता है यह बुरा दौर उसका क्या कर पाता है छोड़ दे साखी,व्यर्थ की दुनियादारी बुरे दौर में कोई न निभाता रिश्तेदारी छोड़,स्वार्थी मात-पितृ,भाई,भगिनी प्यारी काम नही आते बुरे वक्त में पुत्र अरु नारी गर सुख न टिका,दुःख न टिक पायेगा धैर्य रख तेरा भी एकदिन वक्त आयेगा चुप रह,कर्म कर,व्यर्थ न आंखे नम कर एकदिन तेरे हौंसलों से नभ झुक जायेगा जो भी बुरे दौर मे खुद से हंसकर लड़ा है बुरा दौर उसके पास कब तलक रहा है जो बुरे दौर के सामने चट्टान सा खड़ा है बुरा दौर उसके लिये,सुनहरा हो पड़ा है दिल से विजय विजय कुमार पाराशर-"साखी" ©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" #Light बुरा दौर