#जय श्री राम मंगल कलश लिए सब धाये। राम अवध पुर वापस आये।। नगर द्वार तोरण से साजै। राज-महल मे डंका बाजै।। हरषित भये देव -नर- नारी। घर आये हैं अवध बिहारी।। दीप जलावत नगर निवासी। गावत गान करत बहु हांसी।। राज तिलक की फिर तैयारी। मुदित हुई है जनक दुलारी।। सुन्दर छवि निखरत वैदेही। देख अवधपति परम् सनेही।। विधना के विधान को जाने। छुद्र मनुज किसको पहचाने।। जगदम्बा पर दोष लगाये। अपयश ले माता कित जाये।। राज धर्म से राम न भागे। लोक लाज बस सीता त्यागे।। मेटि न पाये कलंक विधाता। वन वन भटकी सीता माता।। व्याकुल चित्त हृदय अति पीरा। कैसे कहै धरहूँ मन धीरा।। मर्यादा का भार उठाये। पति-पत्नी वियोग पुनि पाये।। श्री नारायण रघुकुल नायक। दुख सहते जग के उन्नायक।। प्रभु चरित्र अति परम् पुनिता। सुख-दायक रघुनायक सीता।। डॉ.शिवानी सिंह