ताल्लुक सिर्फ लफ़्ज़ों से है तो इतने करीब हो,,, जब मिल के बातें कर पाएंगें ना जाने वो दिन कब नसीब होंगे।।। मौसम भी होगा जरा शायराना सा,,,रुख हवाओं का भी जरा सा रसिक होगा,,,, देख कर उसको ना जाने मैं क्या बोलूगीं,,, लफ्ज़ साथ देगें भी मेरा या फिर बस माहौल खामोशी सरीख होगा।।। मुझे चुप देख कर तब तुम ही कुछ बोल देना,,, कुछ बातें करना अपनी आंखों से कुछ लफ़्ज़ों में घोल देना।। तेरी बातें सुन मैं हल्का सा मुस्कुरा दूँगी,,, मुस्कुराते मुस्कुराते धीमे से तेरी नज़रों से नज़रें अपनी मैं मिला दूँगी।।। इस तरह से चलते रुकते रुकते चलते कुछ ऐसे हमारी बातें होगीं,,, एक के बाद एक फिर बार बार मुलाकातें होगीं।।। कुछ इसी धीमी रफ्तार से बड़ चलेगा ये सिलसिला,,,, तब ना दिन तन्हा काटेंगे ना वेबुनियाद रातें होगी,,,, कुछ तुम अपना लिखा सुनाओगे मुझे, उनमे कुछ मेरी ही बातें होगीं,,,, हर राह कट जाएगी बड़ी आसानी से, हर दिन आसमानी और हर रात बरसातें होगीं।।। बस एक ही इल्तजा होगी तुझसे ये मेरी,,, नाम देकर के उन लम्हों को कैद ना करना कभी,,,, जो जैसा है वैसा ही रहने देना बदनाम ना करना कभी।।। क्यूँ कि कुछ रिश्ते नाम के मोहताज नहीं हुआ करते,,, वो दूर होकर भी साथ ही रहा करते हैं,,, बस इतनी सी ही डोर है तेरे और मेरे बीच,, कभी मैं आजाऊंगी तुझ तक कभी तुझको बुला लूंगी।।