मन का दीप क्यूँ न अबकी दीवाली हम दीपक यूँ जलायें मन का कोना पड़ा अँधेरा एक दीप वहाँ जलायें जाले लगे हैं मोह माया के दीमक द्वेष भाव की आओ थोड़ा जतन करें ये कचरा दूर हटायें नेह के रंगों से रंग दें मन की दीवारें बहुरंगी आशाओं की रंगोली चलो सजायें झिलमिलायेंगे दीपक यूँ तो और सजेंगी कन्दीलें बिन साथी के सूना आँगन एक मीत चलो बनायें क्यूँ न अबकी दीवाली.... -स्वरचित अजय नेमा #Diwali #मन का दीप#कविता#स्वरचित#नोजोटो