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*हित चाहने वाला पराया भी अपना है* *और अहित करने

*हित चाहने वाला पराया भी अपना  है* 
*और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। 
*रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* 
*और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।*           

*"फलदार पेड़ और    गुणवान*
        *व्यक्ति ही झुकते है,*
*सुखा पेड़ और मुर्ख* 
        *व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।*

*कदर किरदार की होती है*
     *… वरना…कद में तो साया भी*
*इंसान से बड़ा होता है..!!"* *हित चाहने वाला पराया भी अपना  है* 
*और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। 
*रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* 
*और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।*           

*"फलदार पेड़ और    गुणवान*
        *व्यक्ति ही झुकते है,*
*सुखा पेड़ और मुर्ख*
*हित चाहने वाला पराया भी अपना  है* 
*और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। 
*रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* 
*और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।*           

*"फलदार पेड़ और    गुणवान*
        *व्यक्ति ही झुकते है,*
*सुखा पेड़ और मुर्ख* 
        *व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।*

*कदर किरदार की होती है*
     *… वरना…कद में तो साया भी*
*इंसान से बड़ा होता है..!!"* *हित चाहने वाला पराया भी अपना  है* 
*और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। 
*रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* 
*और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।*           

*"फलदार पेड़ और    गुणवान*
        *व्यक्ति ही झुकते है,*
*सुखा पेड़ और मुर्ख*

*हित चाहने वाला पराया भी अपना है* *और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। *रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* *और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।* *"फलदार पेड़ और गुणवान* *व्यक्ति ही झुकते है,* *सुखा पेड़ और मुर्ख*