*हित चाहने वाला पराया भी अपना है* *और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। *रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* *और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।* *"फलदार पेड़ और गुणवान* *व्यक्ति ही झुकते है,* *सुखा पेड़ और मुर्ख* *व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।* *कदर किरदार की होती है* *… वरना…कद में तो साया भी* *इंसान से बड़ा होता है..!!"* *हित चाहने वाला पराया भी अपना है* *और अहित करने वाला अपना भी पराया है*। *रोग अपनी देह में पैदा होकर भी हानि पहुंचाता है* *और औषधि वन में पैदा होकर* *भी हमारा लाभ ही करती है।* *"फलदार पेड़ और गुणवान* *व्यक्ति ही झुकते है,* *सुखा पेड़ और मुर्ख*