व्यक्तित्व की दूसरी शर्त है- एक समता। मनुष्य जो स्वरूप समाज के सामने रखता है उसका आचरण भी वैसा ही होना चाहिये। दूसरों को कितना ही सन्मार्ग दिखलाने वाला, कितना ही हित चाहने वाला यदि अपने निजी आचरण में यथावत नहीं है, तो लोग उसे छली, मतलबी अथवा स्वार्थी समझ कर, दूर भागेंगे! स्वार्थी