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शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है प्रेम प्रेम

शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है ! प्रेम.......
सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना ।
पता है प्रेम क्या है ?
प्रेम था इसलिए न पत्नी ने सवाल किए न बच्चे ने ।
तुम जो निर्णय लो स्वीकार है
मेरी दृष्टि में यही प्रेम पारावार है ।
:
त्रेतायुग में वनवास जाना कोई विरोध नही,सीता का चोरी होना रावण वध राजतिलक
शब्दों के जंगल में सबकुछ खो सा गया है
प्रेम प्रेम न रहकर त्याग समर्पण हो गया है!
मोह, ममता, आसक्ति, प्रीति सबकुछ एकजैसे
ऐसा लगता है इन्हीं में प्रेम का तर्पण हो गया है ! प्रेम.......
सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना ।
पता है प्रेम क्या है ?
प्रेम था इसलिए न पत्नी ने सवाल किए न बच्चे ने ।
तुम जो निर्णय लो स्वीकार है
मेरी दृष्टि में यही प्रेम पारावार है ।
:
त्रेतायुग में वनवास जाना कोई विरोध नही,सीता का चोरी होना रावण वध राजतिलक

प्रेम....... सतयुग में हरिश्चन्द्र का बच्चे और पत्नी सहित बिक जाना । पता है प्रेम क्या है ? प्रेम था इसलिए न पत्नी ने सवाल किए न बच्चे ने । तुम जो निर्णय लो स्वीकार है मेरी दृष्टि में यही प्रेम पारावार है । : त्रेतायुग में वनवास जाना कोई विरोध नही,सीता का चोरी होना रावण वध राजतिलक #पंछी #हरे #शुभसंध्या #paidstory #पाठकपुराण