Nojoto: Largest Storytelling Platform

#जय_बोलूँ_रघुनाथ_की धर्म सनातन की जय बोलूँ,जय

#जय_बोलूँ_रघुनाथ_की

धर्म  सनातन  की  जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।
अवध  पुरी  में  मन्दिर बनता,महिमा है रघुनाथ की।।

घोर  तपस्या अवधराज की,प्रकट थे विष्णु देव जी।
पुत्र  चाह  में  वर  मांगा था,खुशी थे विष्णु देव जी।।
जनक  बने  थे  महाराज जी,तीन मात रघुनाथ की।
धर्म  सनातन  की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

तनुज  चार  थे जन्में भू पर,लक्ष्मी पति आशीष से।
श्याम  वर्ण का गात राम का,रंग मिला जगदीश से।।
बाल रूप में खेल खेल कर,किलकारी रघुनाथ की।
धर्म  सनातन  की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

तीन  अनुज भी साथ चले थे,अवधपुरी का रंग था।
बचन  निराला  रूप मस्त था,प्यारा-प्यारा अंग था।।
स्वर्णिम आभा मुख पर तैरे,चाल मस्त रघुनाथ की।
धर्म  सनातन की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

विष्णु अंश थे दशरथनन्दन,अवतारी प्रभु राम जी।
भीलन जिनको बेर खिलाई,उपकारी प्रभु राम जी।।
तरी  अहिल्या रघुबर जी से,दृष्टि पड़ी रघुनाथ की।
धर्म  सनातन की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

कौशलनंदन पूज्य धरा पर,मूर्ति दिखे रघुराज की।
रावण  जिनके सम्मुख हारा,जय ऐसे रघुराज की।।
अन्त समय में बोला रावण,जय होये रघुनाथ की।
धर्म सनातन की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।
अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़

©Arvind kumar singh #Travel
#जय_बोलूँ_रघुनाथ_की

धर्म  सनातन  की  जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।
अवध  पुरी  में  मन्दिर बनता,महिमा है रघुनाथ की।।

घोर  तपस्या अवधराज की,प्रकट थे विष्णु देव जी।
पुत्र  चाह  में  वर  मांगा था,खुशी थे विष्णु देव जी।।
जनक  बने  थे  महाराज जी,तीन मात रघुनाथ की।
धर्म  सनातन  की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

तनुज  चार  थे जन्में भू पर,लक्ष्मी पति आशीष से।
श्याम  वर्ण का गात राम का,रंग मिला जगदीश से।।
बाल रूप में खेल खेल कर,किलकारी रघुनाथ की।
धर्म  सनातन  की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

तीन  अनुज भी साथ चले थे,अवधपुरी का रंग था।
बचन  निराला  रूप मस्त था,प्यारा-प्यारा अंग था।।
स्वर्णिम आभा मुख पर तैरे,चाल मस्त रघुनाथ की।
धर्म  सनातन की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

विष्णु अंश थे दशरथनन्दन,अवतारी प्रभु राम जी।
भीलन जिनको बेर खिलाई,उपकारी प्रभु राम जी।।
तरी  अहिल्या रघुबर जी से,दृष्टि पड़ी रघुनाथ की।
धर्म  सनातन की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।

कौशलनंदन पूज्य धरा पर,मूर्ति दिखे रघुराज की।
रावण  जिनके सम्मुख हारा,जय ऐसे रघुराज की।।
अन्त समय में बोला रावण,जय होये रघुनाथ की।
धर्म सनातन की जय बोलूँ,जय बोलूँ रघुनाथ की।।
अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़

©Arvind kumar singh #Travel