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सपने बुनते बुनते कब लम्हे उधड़ते गए, पता ही नहीं च

सपने बुनते बुनते कब लम्हे
उधड़ते गए, पता ही नहीं चला
सफर करते करते कब मंजिल आ गई, 
पता ही नहीं चला

©Sneh Prem Chand
  पता ही नहीं चला

पता ही नहीं चला #विचार

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