गुरु बिन था अंधेरा घना नवीन "नव 'बीगोद गुरु बिन था अंधेरा घना । उनके बिन था जीवन फ़ना ।। जबसे आए जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। मेरी ना जग में थी कोई हस्ती । लड़खड़ाती रहती थी ये कस्ती ।। दिनकर से दीप्त चंदा हूँ मैं । गुरुवर बिन थी वीरान बस्ती ।। हताशा के दलदल फँसने लगा । गुरुवर का साया साहिल बना ।। जबसे आए ,जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। उनको करता ,शत शत नमन । उनको करता हूँ हर पल वंदन ।। मिथ्या से भरपूर समुंदर था मैं । गुरुवर ने किया दोष - मंथन ।। कच्चा घड़ा में सार्थक बना । गुरुवर की थाप से पक्का बना ।। जबसे आए ,जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। सदा आपका यूँ ही आशीष हो । नेकी चले सदा ऊर्ध्व शीश हो ।। गुरुवर गुर को ना भूलें हम । मन में सदा ही मेरे पीस हो ।। धन्य हुआ मुझ पर साया बना । तकदीर मेरी जो शिष्य बना ।। जबसे आए ,जीवन में मेरे । तब से ये जीवन जीवन बना ।। गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं नवीन नव बीगोद