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कौन कहता है भारत आज़ाद है! यहां कत्तलेआम पर भारी छ

कौन कहता है भारत आज़ाद है!
यहां कत्तलेआम पर भारी छूट है!
लेकिन प्यार पर गहरी पाबन्दी है!! ये तो बहुत ही दुखद बात है आज एक स्वतंत्रा सेनानी के बहुमूल्य रत्न चंद्रशेखर आज़ाद का 
जन्मदिवस है बहुत लोग उन्हें याद कर रहे है पर उनक  कर्म को भूल रहे है!
आज का भारत!!
आज के स्थिति को
भारत के मौजूदा राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए ‘पट्टे पर मिली आजादी’ की कहावत हकीकत में तब्दील होने की दिशा में कदम बढ़ाती दिखाई देती है। शोषण, उत्पीड़न और लूटमार का जो दौर आज देश में चल रहा है, उससे लगता है कि सामंतवाद लोकतंत्र की शक्ल में पूरी संवैधानिक शक्ति के साथ जनता का खून चूसने पर आमादा है। यह आशंका भी निराधार नहीं लगती कि देश में शासन के शीर्ष पर बैठे लोग महज भारतीय शक्ल वाली कठपुतलियां हैं जो साम्राज्यवादी शक्तियों के इशारों पर नाचने को मजबूर हैं। राजनीतिक प्रणाली के तौर पर जिस लोकतंत्र की मजबूती का ढोल हमारे यहां पीटा जा रहा है उसका सुर उन्हीं विदेशियों के अंतर्मन को संतुष्ट कर सकता है जिनके ढांचे पर भारतीयों के हाथों एक ‘पवित्र संविधान’ की रचना हुई।
कौन कहता है भारत आज़ाद है!
यहां कत्तलेआम पर भारी छूट है!
लेकिन प्यार पर गहरी पाबन्दी है!! ये तो बहुत ही दुखद बात है आज एक स्वतंत्रा सेनानी के बहुमूल्य रत्न चंद्रशेखर आज़ाद का 
जन्मदिवस है बहुत लोग उन्हें याद कर रहे है पर उनक  कर्म को भूल रहे है!
आज का भारत!!
आज के स्थिति को
भारत के मौजूदा राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए ‘पट्टे पर मिली आजादी’ की कहावत हकीकत में तब्दील होने की दिशा में कदम बढ़ाती दिखाई देती है। शोषण, उत्पीड़न और लूटमार का जो दौर आज देश में चल रहा है, उससे लगता है कि सामंतवाद लोकतंत्र की शक्ल में पूरी संवैधानिक शक्ति के साथ जनता का खून चूसने पर आमादा है। यह आशंका भी निराधार नहीं लगती कि देश में शासन के शीर्ष पर बैठे लोग महज भारतीय शक्ल वाली कठपुतलियां हैं जो साम्राज्यवादी शक्तियों के इशारों पर नाचने को मजबूर हैं। राजनीतिक प्रणाली के तौर पर जिस लोकतंत्र की मजबूती का ढोल हमारे यहां पीटा जा रहा है उसका सुर उन्हीं विदेशियों के अंतर्मन को संतुष्ट कर सकता है जिनके ढांचे पर भारतीयों के हाथों एक ‘पवित्र संविधान’ की रचना हुई।