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झील-सी गहरी आंखों में यूं खो जाता हूं मैं भी अपने

झील-सी गहरी आंखों में यूं खो जाता हूं
मैं भी अपने आप मुकम्मल हो जाता हूं

नींद भी अच्छी आ जाती है अक्सर मुज़को
जब मैं तेरा सपना ले के सो जाता हूं

हंस कर सुन लेता हूं ज़मानेभर के ताने,
लेकिन जब भी थक जाता हूं, रो जाता हूं

मैखाने से तोड़ चूका हूं नाता फिर भी
कोई अपना मिल जाता है तो जाता हूं

बातों ही बातों में कितनी देर लगा दी!
वक़्त हुआ है जाने का अब, लो जाता हूं

रोकना चाहो आज अगर तो हाथ बढ़ा दो!
मैं भी मुड़ कर आ नहीं पाता, जो जाता हूं

: हिमल पंड्या

©Himal Pandya himal

#Muh_par_raunak
झील-सी गहरी आंखों में यूं खो जाता हूं
मैं भी अपने आप मुकम्मल हो जाता हूं

नींद भी अच्छी आ जाती है अक्सर मुज़को
जब मैं तेरा सपना ले के सो जाता हूं

हंस कर सुन लेता हूं ज़मानेभर के ताने,
लेकिन जब भी थक जाता हूं, रो जाता हूं

मैखाने से तोड़ चूका हूं नाता फिर भी
कोई अपना मिल जाता है तो जाता हूं

बातों ही बातों में कितनी देर लगा दी!
वक़्त हुआ है जाने का अब, लो जाता हूं

रोकना चाहो आज अगर तो हाथ बढ़ा दो!
मैं भी मुड़ कर आ नहीं पाता, जो जाता हूं

: हिमल पंड्या

©Himal Pandya himal

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Himal Pandya

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