#कुछ अनुभव मेरे # आँखों मे नींद थी पर कोई सपना न था, भीड़ में भी जैसे पास मेरे कोई अपना न था। कैसे काटी हैं वो रातें ,अब क्या कहूँ मैं , कि कैसे मंजिल से पहले मैंने कितना सफर अकेले काटा था फिर भी कुछ न अपने दिल का मैंने किसी के साथ बांटा था। जैसे उन पलों ने कितना कुछ था सिखाया मुझकों होती हैं क्या दुनियाँ ये भी तो था बतलाया मुझकों। ख्वाबों को हक़ीक़त बनाने में जो मेहनत लगती हैं उसके बारे में तब शायद थोड़ा बहुत जान गया था। दुनिया की असलियत कुछ औऱ हैं शायद इस बात को भी मैं थोड़ा बहुत मान गया था। #हिंदी पोएट्री #life experiences#Reality of life