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खुद में ही कितना उलझा हुआ था वो शख्स दुनियादारी स

 खुद में ही कितना उलझा हुआ था वो शख्स
दुनियादारी से कटा हुआ,था अबोला सा
उसके सफ़ेद चेहरे पर गहरी ऑंखें,उसकी 
हृदय की वेदना को कहती सी प्रतीत होती हैं
मै गौर कर रही थी उसके इस बेकल मन को 
मैंने उसे सिर्फ आते जाते ही देखा था अपनी खिड़की से 
रहा न गया तो,एक रोज जाते हुये उसको आवाज दी 
उसके तेज कदम जरा से ठिठके, और पलट कर देखा 
रुको !  मै भी आती हूँ तुम्हारे साथ.....
सुनकर  यह बात वो चौँक गया पर कुछ नहीं बोला 
मै दौड़ कर उसके पास पहुंची,  उसके घर तक गयी
देखकर अस्त व्यस्त घर की हालत,अब की चौंक गयी मै 
ना जाने किस हक से मैने उससे अनगिनत सवाल किये
एक सवाल का भी जवाब नहीं दिया,चुपचाप सुनता रहा वो
मेरी नजर जहाँ भी गई हर तरफ से ख़ामोशी काट रही थी
मै बोलते हुये इधर उधर पड़ा समान ठीक से रखने लगी
अंधेरा छाने लगा तो वो शख्स धीरे से उठा और मोमबत्ती जलाई
उसने मेरी तरफ ख़ामोशी से देखकर पानी का गिलास बढ़ाया
मैने एक बार फिर उसको गौर से देखा और पानी उसके हाथ से ले लिया
पहली बार उसने कुछ कहा, जिंदगी के थपेड़ो ने मेरा सब कुछ छीन लिया
कोई है ही नहीं सुनने वाला किससे कहूँ कहने को कितनी बातें हैं ?

©करिश्मा ताब
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