ए विधाता ! तू बता ज़रा आख़िर इंसानियत है कहां अरे अब तो इंसान कम और राक्षस ज्यादा हैं यहां काश तेरे इस लोक में इंसानियत सर्वोपरि होती तो जाति, धर्म पर कभी यहां लडाई न हुई होती विधाता! मानो अब तेरी इस दुनिया में, चारों तरफ़ अंधेरा गहरा... और इंसानियत है कहीं, गुम इसमें