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जब नदियों ने, ​पर्वतों से बिछड़ कर, रेत के मैंदानों

जब नदियों ने,
​पर्वतों से बिछड़ कर,
रेत के मैंदानों में,
​​अज्ञात वास ले लिया,
​और..,
​बादलों ने,
बरसना भूलकर,
​हवाओं से संधि कर ली,
​सागरों ने,
​अपनी हृदय की गहराइयों में,
​अनेकों प्रश्न गर्भित कर लिये,
​व..,
​अपनी अंक सीमाओं को समेट,
प्रतीक्षारत हो,
​क्षितिज पर अपने मिलन को,
​चिर मौन धारण कर लिया, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#अश्रु_वीथिका

जब नदियों ने,
​पर्वतों से बिछड़ कर,
रेत के मैंदानों में,
​​अज्ञात वास ले लिया,
जब नदियों ने,
​पर्वतों से बिछड़ कर,
रेत के मैंदानों में,
​​अज्ञात वास ले लिया,
​और..,
​बादलों ने,
बरसना भूलकर,
​हवाओं से संधि कर ली,
​सागरों ने,
​अपनी हृदय की गहराइयों में,
​अनेकों प्रश्न गर्भित कर लिये,
​व..,
​अपनी अंक सीमाओं को समेट,
प्रतीक्षारत हो,
​क्षितिज पर अपने मिलन को,
​चिर मौन धारण कर लिया, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#अश्रु_वीथिका

जब नदियों ने,
​पर्वतों से बिछड़ कर,
रेत के मैंदानों में,
​​अज्ञात वास ले लिया,
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