-:- पैसों का शोर - :- सुनता नही कोई किसी की, हर तरफ़ पैसों का शोर है ग़रीब, बस ग़रीब ही रहा यूँ उन पर अमीरों का ज़ोर है किसी ने 'जिस्म' ख़रीदा, पैसो की 'ताक़त' का ज़ोर है किसी ने बेची इज्ज़त, 'रोटी' के लिए नसीब का फ़ेर है हर रिश्ता तार तार यूँ गुमनाम सत्य छिपा कहीं और है अमृत धरा का मोल लगा बैठे 'पैसों' के मद में यूँ चूर है हर चीज ख़रीद ने को है आतुर, स्वार्थ का चोला पहन ख़ुदा यह बन बैठा, पैसे से वर्तमान में 'चलता' प्रेम है रचना क्रमांक :-23 पैसों का शोर #collabwithकोराकाग़ज़ #kkrkrishnavijay #kkr2022 #रमज़ानकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज़ #kkrपैसोंकाशोर