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#OpenPoetry मान लो मैं एक नदी हूं और क्या लहर बनना

#OpenPoetry मान लो मैं एक नदी हूं और क्या लहर बनना चाहोगे तुम 
मैं हूं एक भीनी सुबह की धूप 
एक मद्धम सी सहर बनना चाहोगे तुम
 बहुत नीरस सी हो गई हूं आजकल ,
 कुछ तुफानी चाहती हुं 
तो बोलो तबाही का कहर बनना चाहोगे तुम
 मन भर गया है जिन्दगी के कड़वे कड़वे रसगुल्लों से 
क्या एक बार मेरे लिए मीठा सा ज़हर बनना चाहोगे तुम
#OpenPoetry मान लो मैं एक नदी हूं और क्या लहर बनना चाहोगे तुम 
मैं हूं एक भीनी सुबह की धूप 
एक मद्धम सी सहर बनना चाहोगे तुम
 बहुत नीरस सी हो गई हूं आजकल ,
 कुछ तुफानी चाहती हुं 
तो बोलो तबाही का कहर बनना चाहोगे तुम
 मन भर गया है जिन्दगी के कड़वे कड़वे रसगुल्लों से 
क्या एक बार मेरे लिए मीठा सा ज़हर बनना चाहोगे तुम